हम सभी ने बुद्ध की मूर्तियों को कई मुद्राओं के साथ देखा है, लेकिन कई लोग इन मुद्राओं को समझ नही पाते है | आइये आज हम इनके बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते है |
धम्मचक्र मुद्रा
इस मुद्रा को "धम्म चक्र ज्ञान" (धम्म के चक्र की शिक्षा) के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। यह बुद्ध के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक है। उन्होंने पहली बार आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद सारनाथ में अपने पहले धर्मोपदेश में इस मुद्रा को प्रदर्शित किया। इस आसन में, दोनों हाथों को छाती के सामने रखा जाता है, बाएं हाथ की सतह को अंदर की तरफ और दाहिने हाथ की सतह को बाहर की तरफ रखा जाता है।
इसका अर्थ धर्म या नियम का चक्र घुमाना अर्थात धर्म चक्र गति में लाना है |
ध्यान मुद्रा
इस मुद्रा को समाधि या योग मुद्रा के रूप में जाना जाता है। यह मुद्रा "बुद्ध शाक्यमुनि", "ज्ञानी बुद्ध अमिताभ" और "चिकत्सक बुद्ध" जैसे बौद्धों के गुणों को दर्शाती है। इस आसन में, दोनों हाथ गोद पर रखे होते हैं, दाहिना हाथ बाएं पर होता है और उंगलियां पूरी तरह से फैली होती हैं तथा दोनों हाथो के अंगूठे परस्पर स्पर्श करते है , इस तरह एक त्रिकोण का निर्माण होता है|
बोधि वृक्ष के नीचे अंतिम ध्यान के दौरान बुद्धा द्वारा इस मुद्रा का प्रयोग किया गया था |
भूमीस्पर्श मुद्रा
इस आसन को 'टचिंग द अर्थ' भी कहा जाता है। जो बुद्ध के ज्ञान की प्राप्ति का द्योतक है, क्योंकि बुद्ध कहते थे कि पृथ्वी उनके ज्ञान की साक्षी है। इस मुद्रा में, बाएं हाथ की हथेली उनकी गोद में सीधी है और दाहिना हाथ पृथ्वी को स्पर्श कर रहा है|
इस मुद्रा से बुद्ध दावा करते हैं कि पृथ्वी उनके ज्ञान की साक्षी है।
वरद मुद्रा
यह मुद्रा भेंट, स्वागत, दान, दया और ईमानदारी का प्रतीक है। इस मुद्रा में, बायां हाथ पूरी तरह से खुला होता है और हथेली बाहर की तरफ होती है, जबकि दाहिना हाथ शरीर के साथ स्वाभाविक रूप से रखा जाता है।
पाच विस्तारित उंगलियो के माध्यम से यह मुद्रा पांच पूर्णताओ को दर्शाती है उदारता, नैतिकता, धैर्य, प्रयास और ध्यान संबधी एकाग्रता|
करणा मुद्रा
यह मुद्रा बुराई से बचाने की ओर इशारा करती है। इस मुद्रा को तर्जनी और छोटी उंगली को ऊपर उठा कर और अन्य उंगलियों को मोड़कर किया जाता है। यह बीमारी या नकारात्मक विचारों जैसी बाधाओं को बाहर निकालने में मदद करती है।
यह नकारात्मक उर्जा को बाहर निकालने का प्रतीक है |
वज्र मुद्रा
यह मुद्रा पांच तत्वों, अर्थात् वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी, और धातु के प्रतीक को दर्शाती है। इस मुद्रा में बांये हाथ की खड़ी तर्जनी दांये हाथ की मुट्ठी में रखी जाती है।
यह मुद्रा ज्ञान या सर्वोच्च ज्ञान के महत्व का प्रतीक है | ज्ञान तर्जनी द्वारा दर्शाया जाता है और दाहिने हाथ की मुट्ठी उसकी रक्षा करती है |
वितर्क मुद्रा
यह बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार और परिचर्चा का प्रतीक है। इस मुद्रा में अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मिलाकर किया जाता है, जबकि अन्य उंगलियों को सीधा रखा जाता है। यह लगभग अभय मुद्रा की तरह है लेकिन इस मुद्रा में अंगूठा तर्जनी उंगली को छूता है।
अंगूठे और तर्जनी द्वारा निर्मित वृत उर्जा का निरंतर प्रवाह बनाये रखता है क्योंकि कोई आरम्भ या अंत नही है केवल पूर्णता है |
अभय मुद्रा
यह मुद्रा निर्भयता या आशीर्वाद को दर्शाता है जोकि सुरक्षा, शांति, परोपकार और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व करता है । इस मुद्रा में दायें हाथ को कंधे तक उठा कर, बांह को मोड़कर किया जाता है और अंगुलियों को ऊपर की ओर उठाकर हथेली को बाहर की ओर रखा जाता है।
यह मुद्रा बुद्ध द्वारा ज्ञान प्राप्ति के तुरंत बाद दर्शाई गयी थी |
उत्तरबोधी मुद्रा
दाहिने हाथ की मुद्रा सवोच्च प्राप्ति को दर्शित करती है और बाएँ हाथ की मुद्रा ध्यान-चिंतन को दर्शाती है दोनों को जोड़कर सर्वोच्च आत्मज्ञान की प्राप्ति को दर्शाती है। इस मुद्रा में दोनों हाथ को जोड़ कर हृदय के पास रखा जाता है और तर्जनी उंगलियां एक दूसरे को छूते हुए ऊपर की ओर होती हैं और अन्य उंगलियां अंदर की ओर मुड़ी होती हैं।
यह मुद्रा व्यकित में उर्जा का प्रवाह कराने के लिए जानी जाती है | यह मुद्रा पूर्णता का प्रतीक है |
अंजली मुद्रा
यह मुद्रा श्रेष्ट को नमस्कार का प्रतीक है और इसे गहन सम्मान के साथ आदर का संकेत माना जाता है | यह माना जाता है कि सच्चे बुद्ध हाथ की यह मुद्रा नही बनाते है और यह मुद्रा बुद्ध की मूर्तियों में नही दिखाई जानी चाहिए | यह मुद्रा बोधिसत्वो के लिए है जिनका उद्देश्य पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की तैयारी करना है |